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कविता

स्वप्न

राजेंद्र प्रसाद सिंह


स्वप्न...
कच्ची नींद का पाहुन,
बेवफा है,
- दीठ से... भागे
पीठ-पीछे कोसने को
बंद पलकों में
सदा जागे,
एक खुशबू से बदल दे राह,
एक धूप न जी सके
जिसकी रतीली चाह,
जोड़ ले कड़ियाँ संझाती
शिखाओं की,
- छोड़ दे घड़ियाँ रुलाती
उषाओं की,
स्वप्न...
टूटी बीन की धड़कन,
दोरुखा है !

 


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